भारतीय टेस्ट क्रिकेट के सबसे भरोसेमंद नामों में से एक Cheteshwar Pujara ने अपने Retirement की घोषणा कर दी है। क्रिकेट प्रेमियों के लिए यह खबर भावनात्मक है क्योंकि यह केवल एक खिलाड़ी का रिटायरमेंट नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट के एक सुनहरे अध्याय का अंत है। आधुनिक क्रिकेट के तेज़ खेल और “बाज़बॉल” जैसी आक्रामक रणनीतियों के दौर में, पुजारा का शांत, संयमित और जिद्दी अंदाज़ कहीं “उबाऊ” भी कहा गया। लेकिन यही “उबाऊपन” भारत को दुनिया के सबसे कठिन हालातों में भी विजय दिलाता रहा। उनका करियर उन लोगों को याद दिलाता है कि “धैर्य ही असली हथियार है।”
Wearing the Indian jersey, singing the anthem, and trying my best each time I stepped on the field – it’s impossible to put into words what it truly meant. But as they say, all good things must come to an end, and with immense gratitude I have decided to retire from all forms of… pic.twitter.com/p8yOd5tFyT
— Cheteshwar Pujara (@cheteshwar1) August 24, 2025
टेस्ट क्रिकेट का मसीहा
टेस्ट क्रिकेट का नाम ही “परीक्षा” से आया है। यहाँ खिलाड़ियों की तकनीक, धैर्य और मानसिक ताकत की असली कसौटी होती है। पुजारा ने लगभग एक दशक तक इसी चुनौती को अपनाकर विपक्षी गेंदबाज़ों को थकाने का काम किया। 2010 से 2019 के बीच उन्होंने करीब 50 की औसत से रन बनाए। यह आंकड़ा बताता है कि उनकी “धीमी” बल्लेबाज़ी कितनी गहरी और असरदार थी।
एक उदाहरण यादगार है – ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2018-19 बॉर्डर-गावस्कर सीरीज़। पुजारा ने न केवल शतक जमाए बल्कि अपनी बैटिंग से पूरे गेंदबाज़ी आक्रमण को तोड़कर रख दिया। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी आज भी मज़ाक में कहते हैं कि वे अब भी मैदान से बाहर उनके विकेट का इंतज़ार कर रहे हैं।
पहला परिचय, पहली छाप टेस्ट क्रिकेट का मसीहा

अपने टेस्ट डेब्यू पर पुजारा ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चौथी पारी में 72 रन बनाते हुए दिखा दिया कि वह अलग मिट्टी के बने हैं। चौथी पारी अक्सर बल्लेबाज़ी की सबसे मुश्किल स्थिति होती है। लेकिन जब वीरेंद्र सहवाग जल्दी आउट हो गए तो क्रीज़ पर आए नये बल्लेबाज़ पुजारा। उनकी पारी ने न केवल मैच की दिशा बदली, बल्कि भारतीय क्रिकेट इतिहास में “ड्रविड़ के बाद कौन?” का जवाब भी स्पष्ट किया। वह हमेशा याद दिलाते रहे कि क्रिकेट केवल चौके-छक्के नहीं, बल्कि विकेट पर टिकने और दूसरों को मौका देने की कला भी है।
राहुल द्रविड़ की विरासत और पुजारा की पहचान
भारतीय क्रिकेट में नंबर-3 बल्लेबाज़ी हमेशा विशेष रही है। सचिन तेंदुलकर के बाद विराट कोहली और राहुल द्रविड़ के बाद चेतेश्वर पुजारा – ये जगहें सिर्फ आंकड़ों से नहीं, बल्कि भरोसे से भरी होती हैं। द्रविड़ की तरह ही पुजारा भी “दीवार” कहे जाते रहे। कई बार आलोचना हुई कि उनका स्ट्राइक रेट कम है, रन तेजी से नहीं आते, लेकिन यही धीमी गति भारत के लिए ढाल बन जाती थी। तेज़ बाउंसर हों, घूमती गेंदें हों या टूटती पिच – पुजारा वहीं डटे रहते।
साथी खिलाड़ियों के लिए संबल

विराट कोहली जब कप्तान बने तो पुजारा उनका सुरक्षा कवच साबित हुए। आँकड़े बताते हैं कि जिन मैचों में पुजारा 3 नंबर पर खेले, भारत ने उन मैचों में बढ़त हासिल की। कोहली खुले अंदाज़ में खेल पाते क्योंकि पुजारा विपक्ष को थकाने का काम कर चुके होते। यह साझेदारी भारतीय क्रिकेट के स्वर्णिम काल की पहचान बन गई।
कैरियर की चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
हर क्रिकेटर के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। पुजारा ने भी अपने करियर के आख़िरी वर्षों में संघर्ष देखा। रन बनाने में धीमापन अक्सर विवाद का विषय रहा। चयनकर्ताओं ने भी नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को आगे बढ़ाया और पुजारा अंतिम वर्षों में टीम से बाहर होते गए। मगर यहां भी उन्होंने अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा। उनका मानना रहा कि “टीम के लिए कठिन हालात झेलना ही असली योगदान है।”
अंकों से परे एक विरासत
चेतेश्वर पुजारा ने 103 टेस्ट में 7195 रन बनाए। केवल सात भारतीय बल्लेबाज़ उनसे ज़्यादा रन बना पाए हैं। उनके नाम 18 शतक और 34 अर्धशतक हैं। लेकिन पुजारा का असली योगदान संख्याओं से कहीं आगे है। वह उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जिसने दिखाया कि धैर्य से बड़ा कोई हथियार नहीं।
उनकी तुलना यदि विराट कोहली की निपुण कवर ड्राइव, रोहित शर्मा की पुल शॉट या ऋषभ पंत की विस्फोटक बल्लेबाजी से हो, तो पुजारा के पास वह “फ्लैश” शायद न हो। लेकिन जब वह क्रीज़ पर होते, हर भारतीय फैन जानता था कि “टीम सुरक्षित है।” यही उनका सबसे बड़ा योगदान है।

आज के दौर में पुजारा की अहमियत
बदलते क्रिकेट के युग में जहां हर कोई तेज़ शॉट की तलाश में है, पुजारा की बल्लेबाज़ी हमें याद दिलाती है कि क्रिकेट एक “खेल है टिके रहने का।” नई पीढ़ी शायद उनके अंदाज़ को पुराना कहे, पर उनकी पारियां सिखाती हैं कि जीत केवल तेज़ खेलने से नहीं, बल्कि सोच-समझकर खेलने से भी मिलती है।
निष्कर्ष
Cheteshwar Pujara Retirement भारतीय क्रिकेट की कहानी का भावनात्मक मोड़ है। उनका करियर हमें सिखाता है कि बल्लेबाज़ी केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि टीम के लिए एक ढाल बनने की कला है। उन्होंने साबित किया कि “बोरिंग” भी सुंदर हो सकता है, और क्रिकेट केवल चौके-छक्कों से नहीं, बल्कि धैर्य और संघर्ष से परिभाषित होता है।
उनके जाने से भारतीय क्रिकेट निश्चित ही एक सन्नाटा महसूस करेगा। पर उनकी विरासत सदियों तक उन खिलाड़ियों को प्रेरित करेगी जो कठिन हालात में टीम का साथ देते हुए खुद को भुला देते हैं। चेतेश्वर पुजारा का नाम हमेशा उस जिद्दी बल्लेबाज़ के रूप में याद किया जाएगा जो क्रिकेट में “धैर्य को खूबसूरत” बना गया।
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